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Tatanagar Parking Row: टाटानगर स्टेशन की पार्किंग बनी डर का अड्डा, दबंगई पर रेलवे और सांसद की चुप्पी क्यों

On: July 30, 2025 4:47 PM
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जमशेदपुर:टाटानगर रेलवे स्टेशन, जो कभी पूरे झारखंड और आसपास के राज्यों के यात्रियों के लिए एक सुरक्षित और व्यस्त स्टेशन माना जाता था, अब पार्किंग क्षेत्र को लेकर डर और दबंगई का गढ़ बनता जा रहा है। आए दिन वहां मारपीट, बदसलूकी और पैसे वसूली की घटनाएं सामने आ रही हैं। सबसे हैरानी की बात यह है कि रेलवे प्रशासन, सुरक्षा बल और यहां तक कि क्षेत्रीय सांसद भी इस मामले में चुप हैं।

रोज हो रही है दबंगई, यात्रियों में डर का माहौल

स्टेशन की पार्किंग में ऐसा माहौल बन गया है कि आम आदमी वहां गाड़ी लगाकर खुद को असुरक्षित महसूस करता है। कुछ लोग खुद को ठेकेदार का आदमी बताकर यात्रियों से जबरन पैसे वसूलते हैं। कई मामलों में लोगों से 100 से 500 रुपये तक मांगे गए हैं। विरोध करने पर उन्हें धमकाया भी गया है।

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रात के समय यह स्थिति और भी खराब हो जाती है। खासकर जब कोई महिला यात्री के साथ आता है, तब वहां खड़े गुंडा टाइप लोग उन्हें घूरते हैं, डराते हैं और पैसे देने का दबाव बनाते हैं। लोग चुपचाप पैसे देकर वहां से निकलना ही बेहतर समझते हैं, क्योंकि डर है कि कहीं कुछ अनहोनी न हो जाए।

कौन है इसके पीछे? जानिए नाम और कहानी

बताया जा रहा है कि इस पार्किंग का नया ठेका “इन एंड आउट” नाम की कंपनी को मिला है, जिसके प्रमुख राजीव राम हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार राजीव राम पहले भी आपराधिक मामलों में जेल जा चुके हैं और उनका नाम सुधीर दुबे गैंग के साथ जुड़ा रहा है। अब उन्होंने पार्किंग को अपने वर्चस्व का अड्डा बना लिया है। उनके लोगों का व्यवहार गुंडों जैसा है और रेलवे परिसर में खुलेआम दबंगई करते हैं।

आरपीएफ और जीआरपी क्यों हैं चुप?

रेलवे की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार आरपीएफ (रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स) और जीआरपी (ग्रामीण पुलिस) इस पूरे मामले में चुप हैं। यात्रियों का सवाल है कि क्या ये सुरक्षा बल सिर्फ दिखावे के लिए हैं? क्या उन्हें आम लोगों की सुरक्षा से कोई मतलब नहीं? या फिर उन्हें ऊपर से कोई दबाव है?

सांसद और नेताओं की रहस्यमयी चुप्पी

जमशेदपुर से सांसद और पोटका के विधायक दोनों ने पहले इस मुद्दे पर बातें की थीं। पोटका विधायक संजीव सरदार ने तो कुछ दिन पहले आवाज भी उठाई थी, लेकिन अब वे भी चुप हैं। सवाल यह उठता है कि क्या राजनीतिक दबाव में सबकी आवाज बंद हो गई है? या फिर पैसे और रसूख के आगे सब झुक गए हैं?

आम जनता को मिल रही है सजा

इस पूरे मामले में अगर सबसे ज्यादा कोई परेशान है तो वो है आम जनता। जो लोग स्टेशन छोड़ने या लेने आते हैं, उन्हें डर, अपमान और जबरन वसूली का सामना करना पड़ता है। यह सब एक सरकारी परिसर में हो रहा है और जिम्मेदार लोग आंखें बंद किए बैठे हैं।

क्या सिर्फ पैसे की कमाई के लिए रेलवे ने चुप्पी साध रखी है?

लोगों को लगता है कि रेलवे को इससे कोई मतलब नहीं कि यात्रियों के साथ क्या हो रहा है। उसे सिर्फ इस बात से मतलब है कि ठेकेदार समय पर पैसा दे रहा है या नहीं। चाहे वह पैसे किस तरीके से आ रहे हों – जबरन वसूली से या डराकर – रेलवे को फर्क नहीं पड़ रहा।

निष्कर्ष

टाटानगर स्टेशन की पार्किंग, जो यात्रियों के लिए एक बेसिक सुविधा होनी चाहिए, अब उनके लिए एक डरावनी जगह बन चुकी है। रेलवे, सुरक्षा बल और राजनीतिक प्रतिनिधियों की चुप्पी ने इसे और गंभीर बना दिया है। सवाल यह है कि क्या यह चुप्पी केवल पैसे के लिए है, या इसके पीछे कोई और बड़ा खेल चल रहा है.

अब वक्त आ गया है कि जनता अपनी आवाज बुलंद करे और इस गुंडाराज के खिलाफ आवाज उठाए। क्योंकि अगर आज चुप रहे, तो कल कोई भी सुरक्षित नहीं रहेगा।

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