जमशेदपुर: एमजीएम अस्पताल की ओपीडी में दिखी भारी अव्यवस्था, गर्भवती महिलाओं ने किया विरोध
जमशेदपुर के डिमना चौक स्थित महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) अस्पताल के महिला एवं प्रसूति विभाग में बुधवार को ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई, जिसने सभी को हैरान कर दिया। सुबह-सुबह इलाज के लिए पहुंची कई गर्भवती महिलाओं और अन्य मरीजों को घंटों तक डॉक्टर का इंतजार करना पड़ा।
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सुबह 8 बजे से ही ओपीडी संख्या 202 में लंबी लाइन लग गई थी। इन मरीजों में गर्भवती महिलाएं, अल्ट्रासाउंड के लिए आई महिलाएं और कुछ गंभीर बीमारी से पीड़ित महिलाएं शामिल थीं। अधिकतर महिलाएं बिना कुछ खाए खाली पेट बैठी थीं, क्योंकि अल्ट्रासाउंड से पहले कुछ भी खाना मना होता है। लेकिन दोपहर 12 बजे तक भी कोई डॉक्टर वहां नहीं पहुंचा।
डॉक्टरों की गैरहाजिरी से परेशान होकर महिलाओं ने हंगामा शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि कई घंटे इंतजार करने के बावजूद कोई डॉक्टर नहीं आया, जिससे उन्हें काफी परेशानी हुई। कुछ महिलाएं दूर-दराज के गांवों से आई थीं और घर से सुबह ही निकल पड़ी थीं, लेकिन यहां आकर उन्हें इंतजार और लापरवाही का सामना करना पड़ा।
जब हालात और बिगड़ने लगे, तब मरीजों ने समाजसेवी विमल बैठा को बुलाया। विमल बैठा तुरंत अस्पताल पहुंचे और स्थिति को गंभीर देखते हुए एमजीएम अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ. नकुल प्रसाद चौधरी से मुलाकात की। उन्होंने डॉक्टरों की अनुपस्थिति की शिकायत की और मरीजों की स्थिति बताई।
उपाधीक्षक ने तुरंत सभी संबंधित डॉक्टरों को निर्देश दिया कि वे बचे हुए सभी मरीजों को जल्द से जल्द देखें। इसके बाद डॉक्टर मौके पर पहुंचे और इलाज शुरू हुआ। हालांकि तब तक कई महिलाएं थक चुकी थीं और कुछ की तबीयत और बिगड़ गई थी।
इस घटना ने एक बार फिर एमजीएम अस्पताल की व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। मरीजों का कहना है कि यह पहली बार नहीं है, जब डॉक्टरों ने इस तरह लापरवाही बरती हो। पहले भी इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती।
समाजसेवी विमल बैठा ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि एमजीएम अस्पताल की हालत बेहद खराब है। डॉक्टरों की गैरमौजूदगी और समय पर इलाज न मिलना आम बात हो गई है। आम जनता को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। उन्होंने प्रशासन से मांग की कि इस तरह की घटनाएं दोबारा न हों, इसके लिए कड़े कदम उठाए जाएं।
उन्होंने यह भी कहा कि अस्पताल प्रबंधन को अब अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए और व्यवस्था को ठीक करने की दिशा में गंभीरता से काम करना चाहिए। डॉक्टरों की समय पर उपस्थिति, ओपीडी का सुचारू संचालन और मरीजों की सुविधा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ताकि भविष्य में किसी मरीज को इस तरह की तकलीफ न उठानी पड़े।
इस घटना ने साफ कर दिया है कि सरकारी अस्पतालों की लापरवाही अब बर्दाश्त के बाहर हो चुकी है। आम लोगों को इंसाफ और समय पर इलाज मिलना चाहिए, यही लोकतंत्र और जनकल्याण की असली पहचान है।
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