जमशेदपुर: को-ऑपरेटिव कॉलेज जमशेदपुर और झारखंड साहित्य कला फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में “समकालीन स्त्री कथा साहित्य : चिंता और चेतना” विषय पर एक व्याख्यान सह संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता के रूप में हिन्दी के प्रसिद्ध आलोचक और लेखक प्रोफेसर अरुण होता ने विचार रखे।
प्रो. होता ने कहा कि आज की स्त्री कथा साहित्य सिर्फ ‘देह’ यानी शरीर की बात नहीं करती, बल्कि देश, समाज और वैश्विक मुद्दों पर गहरी दृष्टि डालती है। उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में जब बाजारवाद, उदारीकरण और औद्योगीकरण जैसे शब्दों की चर्चा होती है, तब भी हिन्दी साहित्य ने स्त्री के बदलते हालात को समझने और प्रस्तुत करने में सबसे पहले अपनी चेतना दिखाई है।
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उन्होंने यह भी कहा कि स्त्री लेखन केवल शारीरिक या भावनात्मक तकलीफों तक सीमित नहीं है, बल्कि सामाजिक, पारिवारिक, राजनीतिक और आर्थिक जैसे बड़े विषयों को भी मजबूती से उठाता है। प्रो होता ने यह स्पष्ट किया कि स्त्री विमर्श का दायरा बहुत बड़ा है और यह सिर्फ स्त्री शरीर के इर्द-गिर्द नहीं घूमता।
उन्होंने विभिन्न महिला लेखिकाओं की कहानियों का उदाहरण देते हुए बताया कि किस तरह उनकी रचनाओं में सामाजिक कुरीतियों, पारंपरिक सोच और मानवीय संवेदनाओं को सरल लेकिन सशक्त तरीके से प्रस्तुत किया गया है। प्रो होता ने डॉ विजय शर्मा की कहानी का जिक्र करते हुए बताया कि उसमें सांप्रदायिकता और बेटा-बेटी के भेदभाव जैसे गंभीर मुद्दों को संवेदनशील तरीके से दिखाया गया है।
कॉलेज के प्राचार्य डॉ अमर सिंह ने स्वागत भाषण में कहा कि स्त्री किसी वर्जना की प्रतीक नहीं है, बल्कि वह सृष्टि की जननी है। उन्होंने स्त्री को मानसिक और शारीरिक रूप से पुरुष से श्रेष्ठ बताते हुए कहा कि समाज में उसके प्रति सम्मान और संवेदना की भावना होनी चाहिए।
कार्यक्रम में कई प्रतिष्ठित साहित्यकार, शिक्षाविद और सिने-आलोचक उपस्थित रहे, जिनमें डॉ विजय शर्मा, डॉ क्षमा त्रिपाठी, डॉ ब्रजेश मिश्रा, डॉ सत्यप्रिय महालिक, डॉ एके झा, डॉ सुभाष गुप्ता, डॉ पुष्पा कुमारी, डॉ भारती कुमारी, डॉ नीता सिन्हा, डॉ अंतरा कुमारी, डॉ अशोक कुमार रवानी, डॉ मंगला श्रीवास्तव, प्रो ब्रजेश कुमार सहित कई विभागाध्यक्ष शामिल थे।
कार्यक्रम का संचालन डॉ प्रियंका सिंह ने किया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ रुचिका तिवारी ने प्रस्तुत किया। यह आयोजन न केवल साहित्य प्रेमियों के लिए ज्ञानवर्धक रहा, बल्कि समाज में स्त्री के व्यापक योगदान को लेकर नई सोच और समझ विकसित करने का एक सार्थक प्रयास भी साबित हुआ।
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