जमशेदपुर:छत्तीसगढ़ी समाज द्वारा जमशेदपुर में ‘हरेली तिहार’ को पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया। यह कार्यक्रम श्रीश्री शीतला माता मंदिर, टुइलाडुंगरी के सभागार में आयोजित किया गया, जहाँ बड़ी संख्या में समाज के लोग शामिल हुए। ‘हरेली’ छत्तीसगढ़ का पहला त्योहार माना जाता है और इसे प्रकृति, खेती और परंपरा से जुड़ी भावनाओं के साथ मनाया जाता है।
कार्यक्रम की शुरुआत माता शीतला और कृषि औजारों की पूजा से की गई। इसके बाद दीप प्रज्वलन कर विधिवत कार्यक्रम की शुरुआत की गई। इस मौके पर मंदिर के अध्यक्ष दिनेश कुमार ने कहा कि हरेली त्योहार मनुष्य और प्रकृति के बीच गहरे रिश्ते का प्रतीक है। यह उन औजारों के प्रति कृतज्ञता का भाव व्यक्त करता है, जिनसे किसान धरती को जीवन देने का काम करते हैं।
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कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में वंदना जांघेल, जो कि मिसेज ग्लोबल यूनिवर्स इंडिया 2023 रह चुकी हैं, शामिल हुईं। उन्होंने कहा कि हरेली किसान और सभी छत्तीसगढ़वासियों का पर्व है। इसका अर्थ हरियाली से जुड़ा है और यह बुवाई के मौसम की शुरुआत का प्रतीक होता है। इस दिन किसान खेती के कामों जैसे जुताई, रोपाई और बियासी के बाद आराम करते हैं और अपने उपकरणों की पूजा कर आभार जताते हैं।
शीलू साहू ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया और परंपरागत त्योहारों को संजोने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। कार्यक्रम में महिलाओं के लिए पारंपरिक खेलकूद का आयोजन किया गया, जिससे सभी में उत्साह का माहौल बना रहा।
हरेली से जुड़ी जानकारी पर प्रश्नोत्तरी भी आयोजित की गई, जिसमें भाग लेने वालों को अतिथियों द्वारा पुरस्कृत किया गया। कार्यक्रम में “सावन क्वीन” प्रतियोगिता भी रखी गई, जिसमें कमला निषाद को विजेता चुना गया।
“सावन महतारी” कार्यक्रम की अध्यक्षता जमुना निषाद ने की और संचालन परमानंद कौशल तथा गिरधारी साहू ने किया। आयोजन को सफल बनाने में छत्तीसगढ़ी समाज के अनेक सदस्य सक्रिय रूप से शामिल रहे।
उपस्थित प्रमुख लोग:
देवकी साहू, नूतन साहू, मंजू ठाकुर, मंजू साहू, द्रोपदी साहू, सोनी साहू, इंद्रा देवी, हेमा साहू, सुमन निषाद, गौरी साहू, मनोरमा साहू, प्राची निषाद, देववती, पार्वती देवी, पुष्पा निषाद, सरिता देवी, सावित्री निषाद, सरस्वती देवी, रत्ना साहू, परमानंद कौशल, मनमोहन साहू, जितेन्द्र साहू, हेमंत साहू, लालू राम साहू, त्रिवेंद्र कुमार, सत्येंद्र साहू, वीरेंद्र कुमार, मोतीलाल साहू, गंगाराम साहू और रोशन साहू।
इस प्रकार, छत्तीसगढ़ी समाज ने जमशेदपुर में न केवल अपनी संस्कृति और परंपरा को जीवित रखा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी अपने मूल से जोड़ने का एक शानदार उदाहरण प्रस्तुत किया।
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