सौरभ कुमार, जादूगोड़ा: पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले में एक सुदूर और पिछड़ा आदिवासी गाँव है जिसका नाम जिलिंग सेरेंग है, जहाँ आज भी कई बुनियादी सुविधाएं नहीं पहुँच पाई हैं. लेकिन इसी गांव की एक साधारण आदिवासी लड़की मालती मुर्मू ने ऐसा काम कर दिखाया है, जो लाखों के बजट और बड़ी योजनाएं भी नहीं कर पाई थी. उन्होंने अपने मिट्टी के घर से एक ऐसी स्कूल की शुरुआत की, जो आज 60 से ज़्यादा बच्चों के भविष्य की नींव बन चुकी है.
गांव के बच्चों को शिक्षा से जोड़ने का संकल्प

मालती मुर्मू ने साल 2020 में जब देखा कि गांव के अधिकतर बच्चे सरकारी स्कूल न जाने के कारण शिक्षा से दूर हो रहे हैं. तो उन्होंने अपने ही घर को स्कूल में बदलने का फैसला किया। घर के एक छोटे से कमरे को उन्होंने कक्षा बना दिया और गांव के बच्चों को बुलाकर पढ़ाना शुरू किया। शुरू में बहुत मुश्किलें आई और बच्चे भी कम आते थे, संसाधन कम था, किताबें नहीं थीं। लेकिन मालती अपने संकल्प से पीछे नहीं हटा।
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धीरे-धीरे बदलने लगी तस्वीर

धीरे-धीरे गांव के माता-पिता का भरोसा भी जुड़ता गया और बच्चे नियमित रूप से आने लगे थे. आज मालती मुर्मू लगभग 85 परिवारों के बच्चों को मुफ्त में शिक्षा दे रही हैं। वे बच्चों को पढ़ने के साथ साथ आत्मविश्वास, अनुशासन और सामाजिक मूल्यों की भावना भी पैदा कर रही है।
जहाँ सरकार नहीं पहुँची पाई, वहाँ मालती बनीं एक आखिरी उम्मीद।
गांव से करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित सरकारी स्कूल तक पहुंचना बच्चों के लिए बहुत कठिन था. खराब रास्ते, ट्रांसपोर्ट की कमी और आर्थिक दिक्कतों के कारण शिक्षा एक सपना बन चुकी थी. लेकिन मालती मुर्मू ने इस सपना को हकीकत में बदल दिया. उनके प्रयासों से गांव में सामाजिक परिवर्तन की नींव रखी गई, जहाँ आज शिक्षा एक अधिकार नहीं, बल्कि एक अवसर बन चुकी है.
एकता और सहयोग का नया अध्याय शुरू हुआ।
इस कदम को उठाने के बाद मालती न सिर्फ बच्चों को शिक्षित किया, बल्कि पूरे गांव में सामूहिकता और सहयोग की भावना को भी मजबूत किया. अब गांव के लोग एक-दूसरे की मदद करते हैं, और बच्चों के भविष्य के लिए मिलकर प्रयास करते हैं और शिक्षा को प्राथमिकता देते हैं।
प्रेरणा बनीं मालती मुर्मू

मालती मुर्मू आज सिर्फ अपने गांव के लिए नहीं, बल्कि पूरे भारत के लिए एक प्रेरणा की मिसाल बन गई हैं. उनके संघर्ष और योगदान ने यह साबित कर दिया कि बदलाव के लिए बड़े संसाधन नहीं, बल्कि मजबूत इरादे चाहिए। मिट्टी के घर से शुरू हुई यह शिक्षा की मशाल अब पूरे समाज को रोशन कर रही है।
मालती मुर्मू की यह कहानी एक ऐसी मिसाल है, जो हर उस व्यक्ति को इंस्पायर (प्रेरित) करती है. जो सोचता है कि उसके पास साधन नहीं हैं। जब नीयत साफ और उद्देश्य बड़ा हो, तो मिट्टी के घर से भी इतिहास रचा जा सकता है।
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